शुरु से ही पूरी दुनिया के सामने अपनी दोहरी मानसिकता रखने वाला मुल्क पाकिस्तान आज अपनी ही सरज़मी पर अपने ही वजूद को बचाने की ज़दोजहेद कर रहा है । आज बेशक पाकिस्तानी सेना ने तालिबानियों के खिलाफ़ अपना मोर्चा संभाल लिया हो, आज बेशक इस जंग में कट्टरपंथी नेताओं के वज़ूद को नेस्तनाबूत करने के दावे से हूकूमते पाकिस्तान अपनी जीत की अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पीठ थपथपावा रही हो, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि कुछ महीने पहले कट्टरपंथी और उनके शरियत के सामने लोकतंत्र का मुखौटा उड़ने वाली पाकिस्तानी सरकार ने अपने कमज़ोर घूटने टेक दिये थे , हालांकि दोनो के बीच स्वात घाटी को लेकर शांति समझौता ज़रुर हुआ था, लेकिन ये समझौता पाकिस्तान की कमज़ोर सरकार और हूकूमत पर काबिज हुए बेरहम लोगों का समझौता था ।
पूरी दुनिया को अपनी बपौती समझने वाला देश अमेरिका ने आज इसी गृहयुद्ध से खुश होकर अपनी ज़ुबा बदलते हुये ज़रदारी साहब को पाकिस्तान की ज़रुरत बता दिया, इतना ही नही दोनों ने साथ ही व्वाइट हाउस में आतंकवाद नाम के कैंसर को खत्म करने की बात कही, पर अगर हम अपनी यादास्त पर ज़ोर दें तो ये वही मुल्क है जिसने 26/ 11 के हमले के बाद पाकिस्तान को दुनिया के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया था ।
हो सकता है की सेना और लड़ाकूआं के बीच चल रहा युद्ध अमेरिका के दबाब का नतिजा ना हो और पाकिस्तान सरकार को अचानक अपनी सोई हुई ताकत और अपनी बेबस आवाम की याद आ गई है लेकिन आवाम का तभी वही सोचना था की आखिरकार इस ताकत का अहसास उसे स्वात घाटी के मसले पर ही क्यो हुआ, क्वेटा,बलूचिस्तान,अमनकोट जैसे इलाके कबसे तालिबानी लड़ाकू और अमेरिकी सेना के ज़ुल्मों-सितम सह रही है वो शायद इस लिये क्योकि पाकिस्तीन सरकार के लिये आज की तारीख में मुल्क का मतलब सिर्फ इस्लामाबाद तक सीमित रह गया, तभी तो बलूचिस्तान और उसके जैसे कई इलाकों को उसके हाल पर छोड़ लड़ाकूओं से इस्लामाबाद को बचाने की कोशिश को कट्टरपंथियों के खिलाफ जंग का नाम दे दिया गया है ।
वैसे इस मुल्क में ऐसा पहली बार नही हुआ इसके इतिहास पर नज़र डालें तो हर बार ये मुल्क अमेरिका नाम की बैसाखियों के सहारे चलता रहा है , चाहे वो मुशर्रफ साहब के वक्त मस्जि़द लाल का मामला हो या फिर 10 परसेंट के समय की हकीकत, इन सभी मोंड़ पर बस हूरूमत के चेहरे बदले है नाकी हूकूमत की हकीकत । सरकार किसी की भी हो , शासन कोई भी चलाए लेकिन शासन का फंदा हमेशा जम्हूरियत के गले ही कसा जाता है । महरुम मोहतर्मा बेनज़ीर भुट्टो के इंतकाल के बाद वहा चुनाव तो इस तरह हुए मानो जैसे कुछ दिनों बाद ही मुल्क के तकदीर का फैसला आवाम के हाथों ही होगा , लेकिन सैनिक शासन और बेबस हूकूमदारों के बीच वहां की आवाम की स्तिथी भी हमारे देश के राष्ट्रपति की तरह है, जिसके नाम पर पाकिस्तान अमेरिका से समय-समय पर सहानुभूति लूटता रहा है लेकिन उसी आवाम का हाल पूछने की फुरसत किसी को भी नही है । बहरहाल पाकिस्तान बेशक इस जंग में पास हो जाये लेकिन इन सावालों के घेरे में वो खुद को हमेशा खड़ा पायेगा , की क्या हिंदुस्तान से अलग हुआ ये मुल्क इसलिये पाकिस्तान कहलाया था ।
पूरी दुनिया को अपनी बपौती समझने वाला देश अमेरिका ने आज इसी गृहयुद्ध से खुश होकर अपनी ज़ुबा बदलते हुये ज़रदारी साहब को पाकिस्तान की ज़रुरत बता दिया, इतना ही नही दोनों ने साथ ही व्वाइट हाउस में आतंकवाद नाम के कैंसर को खत्म करने की बात कही, पर अगर हम अपनी यादास्त पर ज़ोर दें तो ये वही मुल्क है जिसने 26/ 11 के हमले के बाद पाकिस्तान को दुनिया के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया था ।
हो सकता है की सेना और लड़ाकूआं के बीच चल रहा युद्ध अमेरिका के दबाब का नतिजा ना हो और पाकिस्तान सरकार को अचानक अपनी सोई हुई ताकत और अपनी बेबस आवाम की याद आ गई है लेकिन आवाम का तभी वही सोचना था की आखिरकार इस ताकत का अहसास उसे स्वात घाटी के मसले पर ही क्यो हुआ, क्वेटा,बलूचिस्तान,अमनकोट जैसे इलाके कबसे तालिबानी लड़ाकू और अमेरिकी सेना के ज़ुल्मों-सितम सह रही है वो शायद इस लिये क्योकि पाकिस्तीन सरकार के लिये आज की तारीख में मुल्क का मतलब सिर्फ इस्लामाबाद तक सीमित रह गया, तभी तो बलूचिस्तान और उसके जैसे कई इलाकों को उसके हाल पर छोड़ लड़ाकूओं से इस्लामाबाद को बचाने की कोशिश को कट्टरपंथियों के खिलाफ जंग का नाम दे दिया गया है ।
वैसे इस मुल्क में ऐसा पहली बार नही हुआ इसके इतिहास पर नज़र डालें तो हर बार ये मुल्क अमेरिका नाम की बैसाखियों के सहारे चलता रहा है , चाहे वो मुशर्रफ साहब के वक्त मस्जि़द लाल का मामला हो या फिर 10 परसेंट के समय की हकीकत, इन सभी मोंड़ पर बस हूरूमत के चेहरे बदले है नाकी हूकूमत की हकीकत । सरकार किसी की भी हो , शासन कोई भी चलाए लेकिन शासन का फंदा हमेशा जम्हूरियत के गले ही कसा जाता है । महरुम मोहतर्मा बेनज़ीर भुट्टो के इंतकाल के बाद वहा चुनाव तो इस तरह हुए मानो जैसे कुछ दिनों बाद ही मुल्क के तकदीर का फैसला आवाम के हाथों ही होगा , लेकिन सैनिक शासन और बेबस हूकूमदारों के बीच वहां की आवाम की स्तिथी भी हमारे देश के राष्ट्रपति की तरह है, जिसके नाम पर पाकिस्तान अमेरिका से समय-समय पर सहानुभूति लूटता रहा है लेकिन उसी आवाम का हाल पूछने की फुरसत किसी को भी नही है । बहरहाल पाकिस्तान बेशक इस जंग में पास हो जाये लेकिन इन सावालों के घेरे में वो खुद को हमेशा खड़ा पायेगा , की क्या हिंदुस्तान से अलग हुआ ये मुल्क इसलिये पाकिस्तान कहलाया था ।
ठीक कहा आपने। तालिबान अर्थात भस्मासुर का आधुनिक संस्करण।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
वह तालिबान तो है ही,पर यहां तो हर घर में तालिबान घुस रहा है-तथा-कथित development के नाम पर मजदूरों के रोजगार और किसानो की जमीन छीनकर-इस पर भी लिखें
जवाब देंहटाएंhttp//:gazalkbahane.blogspot.com/या
http//:katha-kavita.blogspot.com पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें
दर्द-ए-हिंदुस्तान का इंतज़ार रहेगा।
जवाब देंहटाएंजरा ख़ुद को भी रो लें।
सुस्वागतम्.....
बहुत सटीक लेखन है पर आंखे तो उनकी अभी भी नहीं खुली , पर हमें तो कुछ करना ही पड़ेगा अगर समाज को बचाना है तो कुछ तो करना ही होगा भले ही इन धर्म के चाँद ठेके दारो के खिलाफ जंग ही क्यों न छेदनी पड़े
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आपने । आपका शब्द संसार भाव, विचार और अभिव्यिक्ति के स्तर पर काफी प्रभावित करता है ।
जवाब देंहटाएंमैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-फेल होने पर खत्म नहीं हो जाती जिंदगी-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
होती तभी सफल सरकार, जब जनमानस हो तैयार।
जवाब देंहटाएंठीक कहा आपने...........पाकिस्तान और अमेरिका भी दोहरी नीति के शिकार हैं............... पाकिस्तान में आम आदमी का jeena मुश्किल है........... किसी ने सही कहा है..अपने बीजे वृक्ष खुद ही काटने पड़ते हैं
जवाब देंहटाएंachcha hota yadi hum apani buraiyo per najar daale . ek aur hum pakistan se keh rahe he ki pakistan atankbad se ladne me serious nahi he . dusari aur hum afjal jaise guru ko saja dene dinale me asmarth he .kyo kehte he bahana dekar ki hamare yaha ka kannon deri se saja deta he . phir pakistan ko ki dosh kyo dete ho
जवाब देंहटाएंjo boya wahi katega. narayan narayan
जवाब देंहटाएंACHHA LAGA
जवाब देंहटाएंBADHAI!
अपने ही जहर से तडपने को अभिशप्त देश।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
हिंदी में इस्लामिक वेब
जवाब देंहटाएंआज आपका ब्लॉग देखा.... बहुत अच्छा लगा. मेरी कामना है कि आपके शब्दों को नये अर्थ, नयी ऊंचाइयां एयर नयी ऊर्जा मिले जिससे वे जन-सरोकारों की सशक्त अभिव्यक्ति का सार्थक माध्यम बन सकें.
जवाब देंहटाएंकभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें-
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
mobile : 09425800818
अच्छा लेख है। पाकिस्तान क्यों बना इसके पीछे नहीं जाऊंगा। मगर इतना जरूर कहूंगा यदि दिलों में एक-दूसरे के प्रति प्यार व सम्मान हो, कुछ बेहतर करने की ऊर्जा हो तो अलग होने में कोई बुराई नहीं है। वैसे भी आज कौन से और कितने परिवार(देश की छोटी सामाजिक इकाई)संयुक्त है। जहां तक अमेरिका की दादागिरी का ताल्लुक है तो मानना होगा कि वह आर्थिक, सामरिक तौर पर संपन्न राष्ट्र है। फिर उसके पास बेशुमार संसाधन हैं। उसकी खोज का पोत निरंतर चलता रहता है और वह इसकी अहमियत भी समझता है। वह क्वालिटी में विश्वास करता है। इसके लिए उसे कुछ भी करना पडे करता है। पहले स्वयं को मजबूत बनाना होता है, फिर आप दादागिरी के काबिल बनते हैं। पाकिस्तान के पास संसाधन तो हैं,पर इच्छाशक्ित नहीं है। वहां धर्म के ठेकेदारों को, जिनके पास अकूत संपत्ति है और बंद दिमाग वाले लोग भी, अपनी दागागिरी चमकानी है।
जवाब देंहटाएंवीरेंद्र राणा