बुधवार, 24 अगस्त 2011



एक शाम

हर शाम यूं ही मेरे पास चली आती है ,
दिल के अरमां को गुदगुदाती है ।

यादों के साए से कोई निकल आता है ,
चुपके से कुछ कानों में कुछ कह जाता है ।

मैं ख़ामोश रह जाती हूं,
और शाम बिना कुछ कहे सब समझ जाती है ।

खिड़की के झरोखे से जब मैं देखती हूं,
सूरज डूबता हुआ नज़र आता है ।

मेरा दिल बस बैठ जाता है की ,
एक और शाम यूं ही हाथों से निकल जाएगी ।

पर फिर वो शाम करीब आ जाती है,
और सुबह का पैगाम दे जाती है ।

शाम जाएगी नहीं तो ,सुबह आएगी कैसे ?
ज़िंदगी का फलसफा भी तो, इसी में तो छुपा रहता है ।



चारु सरस्वती मिश्रा






2 टिप्‍पणियां:

  1. bilkul sahi khah charu tumne, hum sab ki zindagi mein ek esa sawal hota hai jis ka jawab hum nahi jante..aur usi ko jajne ke lieyh har kahin tlashte rehte hain ... bahut khuub

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  2. Charu ko meri tarf se bahut badiya keh dijiyega Ruchi...kyuki sach me unhone bahut hee Dil se likha hai....God Bless Her :)

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