शनिवार, 25 जुलाई 2009

तन्हा हैं सफ़र ज़िंदगी का

अब साथ भी उनका रहे या न रहे
चलना है मुझे वो चले या न चले
पूछो अभी उससे बहारों का पता
यूँ रू-ब-रू फिर वो रहे या न रहे
तुम आज जी भर के सीसकने दो मुझे
कल क्या पता ये ग़म रहे या न रहे
हम तो कहेंगे जो भी कहना हैं हम
उसकी है मरज़ी वो सुने या न सुने
मुझे मेरी बस राह आ जाए नज़र
ये रात चाहे फिर ढले या न ढले
है ज़िंदगी का अर्थ ही चलना
राह मिल गई मंज़िल मिले या न मिले

10 टिप्‍पणियां:

  1. है ज़िंदगी का अर्थ ही चलना
    राह मिल गई मंज़िल मिले या न मिले
    बहुत सुन्दर सकारात्मक अभिव्यक्ति है आभार और बधाई

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  2. है ज़िंदगी का अर्थ ही चलना
    राह मिल गई मंज़िल मिले या न मिले

    bahut hi sundar rachana.......badhiya

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  3. awesome poem...express all d pain of Love...

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  4. ज़िंदगी का अर्थ ही चलना
    राह मिल गई मंज़िल मिले या न मिले

    सुंदर रचना...

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  5. चलना है मुझे वो चले या न चले

    है ज़िंदगी का अर्थ ही चलना
    राह मिल गई मंज़िल मिले या न मिले...

    वाकई में जीवन की यही सच्चाई है लेकिन अगर राह सही पकड़ी हो तो मंजिल जरूर कदमो में ही होती है...........
    सुन्दर रचना......

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