मंगलवार, 4 अगस्त 2009

KYA YAHI HAI SACH KA .... ?

‘सच का सामना’ आखिरकार कौन कर रहा है ,वो जो इन सवालों का बड़ी ही दिलेरी से जवाब दे रहे हैं, या फिर वो जो इस कड़वे सच को सुन कर इस पर तालियां बजा रहे हैं या फिर वो खुद सच जो अपने बारे में सुनकर अपने आपको सरआम बिकता हुआ देख रहा है । हां अब बिक रहा है सच सरआम बाज़ार में । इस बाज़ार में है चारों तरफ है स्पॉट लाइट, कैमरा, दर्शक, तालियां,और सच के नाम पर भरपूर दौलत और इस बाज़ार का नाम है रिएलिटी शो हांलाकी ये बाज़ार भी हमारे आम बाज़ारो जैसा ही है जिसमें लोगों की भीड़ है फर्क बस इतना है की आम बाज़ारों में हम सामान लेकर पैसे देते हैं और यहां खुद के अस्तिव को बेच कर मिल रहे है पैसे और उनके साथ शोहरत भी कुल मिलाकर कहा जाये तो हर तरफ से फायदे का सौदा । हैरानी की बात है ना ! हम अपने जिस सच को पाप से बचाने के लिये हरिद्वार में जाकर गंगा में डुबकी लगा नहाते है उसी सच को आकर बेचते इस बाज़ार में । एका एक सभी को सच बोलने की तलब सी क्यों जाग उठी , क्योकी हमें तो गीता और कुरान पर हाथरख भी झूठ बोलने की आदत है फिर चाहे वो अदालती काम हो या फिर हमारी रोज मर्रा की ज़िंदगी । वो शायद इस लिये क्योकी अब ये सच दिन पे दिन बाज़ारु होता जा रहा है । ज़रा सोचिये आज के इस वक्त में जहां सिक्के का ही बोल बाला हो वहां इसे नंगाकर इसकी कीमत लगाने में क्या हर्ज़ है । और फिर हम सीना चौड़ाकर सरेआम सच की नुकीली तलवार पर चलने का दम भी तो भर रहे हैं, । चाहे इस नुकीली तलवार की चुभन हमारे पारिवारीक रिश्तों को भले चिथड़े ही करें । आखिकार ये ही तो है सच का सामना । पता नही रिएलिटी नाम का ये जानवर हमारे किन किन रिश्तों को निगलेगा और ना जाने कितनी बार हमारे सामाजिक माहौल अपने विष से मुर्छित करेंगा दरसल हम रिएलिटी के नाम पर दे रहे हैं अपने अंदर के शैतान को पनाह ,जी हां जहां ये शैतान सरेआम आजादी मे अपनी गंदगी फैला रहा है और हम इसे सामाज का आयना समझ इसमें अपनी और अपने सामाज की तस्वीर देखने की कोशिश कर रहें हैं ।

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